Saturday, June 12, 2021

Raabta-e-Muntazar !

वो अहले सुबह के ख़्वाब-सी सुकून हो तुम,
ख्यालों की हद को बेहद कर दो, वो हक़ीकत हो तुम !

तुम्हारी बेलफ्ज़ बातों में भी एक अजब-सी नरमाहट है...
ख़ामोशियों को भी आवाज़ दे दे, कुछ ऐसी नज़ाकत है !

वो जो ज़ुल्फों की आग़ोश में हैं झुमके तुम्हारे,
लगता जैसे बादलों में से छुपकर है वो चाँद निहारे ।

हैरान हूँ तेरे रुख़सार में वाबस्ता नूर देखकर,
कुछ इस कदर हसीन है...जैसे पत्तियों से सरकती हो बारिशों की बूँद लेकर !

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